राजस्थान काडर के 2002 बैच के वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी राजीव चतुर्वेदी (IFS Rajiv Chaturvedi) बड़े सरकारी पद पर होने के बावजूद जयपुर विकास प्राधिकरण (Jaipur Development Authority) की बदनाम कार्यप्रणाली की चपेट में आ गए। प्राधिकरण द्वारा आईएफएस राजीव चतुर्वेदी को 2014 में आनंद विहार आवासीय योजना में 360 वर्गगज भूखण्ड आवंटित किया गया था। इस प्लॉट के पेटे राजीव चतुर्वेदी ने जयपुर विकास प्राधिकरण को 46 लाख, 40 हजार रुपए भी जमा करवा दिए थे। लेकिन 10 साल गुजर जाने के बाद भी आनंद विहार योजना आज भी उजाड़ है। आनंद विहार ही नहीं इस दौर की दर्जनभर से ज्यादा योजनाओं में जनता का पैसा फंस चुका है और उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। जागरुक ग्राहक की भूमिका में आईएफएस राजीव चतुर्वेदी (IFS Rajiv Chaturvedi) ने जयपुर विकास प्राधिकरण द्वारा योजना को पैसा लेने के बाद भी विकसित नहीं करने पर उपभोक्ता आयोग का 2017 में दरवाजा खटखटाया। उपभोक्ता आयोग ने प्राधिकरण के खिलाफ पैसा वापसी का आदेश दे दिया। 2018 में आयोग ने 2 महीनेका ब्याज सहित मूल रकम व 2.5 लाख रुपए आईएफएस राजीव को देने का फैसला सुना दिया। लेकिन जयपुर विकास प्राधिकरण ने मामले को निपटाने की बजाय, उसमें कानूनी पेचीदगीयां डाल दी।
पैसा डूबता दिखा, तो IFS ने न्यायालय की शरण ली
आईएफएस राजीव चतुर्वेदी (IFS Rajiv Chaturvedi) अपनी ईमानदार छवि के लिए पहचाने जाते हैं। अपनी और अपने माता-पिता की मेहनत और ईमानदारी की कमाई के 46 लाख रुपए इकट्ठा कर 2014 में जयपुर विकास प्राधिकरण में जमा करवाने के बावजूद राजीव को जंगल में प्राधिकरण की मंशा विकास करने की नजर नहीं आई। उन्होंने पैसा डूबता दिखा तो उपभोक्ता न्यायालय की शरण ली। रियल एस्टेट जानकारों की मानें, तो इतना पैसा राजीव ने किसी अन्य योजना और अच्छी लोकेशन में उस दौर में निवेश किया होता, तो यह 4 करोड़ से ऊपर की प्रॉपर्टी बन चुकी होती। क्योंकि पिछले दस सालों में प्रॉपर्टी की कीमतों में 10-15 गुना तक के उछाल आए हैं, जिनमें जगतपुरा, रिंग रोड़ के अंदर की जमीने, वाटिका, सीकर रोड़ जैसे कई इलाके हैं, जहां निवेशकों को जबरदस्त फायदा मिला है। इधर बड़ा वित्तीय नुकसान तो राजीव और उनके परिवार को हुआ ही, लेकिन जयपुर विकास प्राधिकरण से न्याय की लड़ाई उन्होंने जारी रखी।
जयपुर विकास प्राधिकरण की बेरुखी देखते हुए, राजीव ने न्यायालय की शरण ली। उपभोक्ता आयोग से मामला उच्च न्यायालय तक पहुंचा। इस मामले में हाईकोई की खण्डपीठ ने हाल ही जयपुर विकास प्राधिकरण को राहत देने वाले एकलपीठ आदेश को रद्द कर दिया है।
IFS के लिए IPS Pankaj Choudhary आगे आए
यह मामला अब तक 10 साल में इतना पेचीदा हो गया है कि अब राजीव चतुर्वेदी को न्याय दिलाने के लिए राजस्थान काडर के ही दबंग आईपीएस पंकज चौधरी ने मुख्य सचिव को पत्र लिखकर दोषियों पर कार्रवाई की मांग कर दी है। चौधरी का आरोप है कि प्राधिकरण अधिकारियों ने एक अविकसित योजना में वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी को ऐसा भूखण्ड बेचा जिसकी जांच की जानी चाहिए और दोषियों को दण्डित किया जाना चाहिए। क्योंकि ऐसी घटनाएं गलत उदाहरण पेश करती हैं। इस वक्त भाजपा सरकार बनने के बाद मुख्य सचिव सुधांश पंत खुद अलग-अलग विभागों में पहुुचे हैं और काम में कोताही बरतने वालों के प्रति सख्त रवैया अपना रहे हैं। उन्होंने पिछले दिनों जयपुर विकास प्राधिकरण का भी औचक निरीक्षण किया था और कोताही बरतने वालों पर कार्रवाई हुई थी। साथ ही जयपुर विकास प्राधिकरण की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए थे, जिसके बाद प्राधिकरण के सभी काम ऑनलाइन शुरू कर दिए गए हैं। ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि आईपीएस पंकज चौधरी की मुख्य सचिव को लिखी चिट्ठी इस मसले को निश्चित ही किसी समाधान तक ले जाने में कामयाब होगी। आईपीएस पंकज चौधरी राजस्थान काडर के 2009 बैच के अधिकारी हैं और हक की लड़ाई लडऩे के लिए जाने जाते हैं। आईएफएस राजीव चतुर्वेदी के इस मामले में जहां कोई ब्यूरोक्रेट खुलकर उनके साथ आकर नहीं खड़ा हुआ, वहीं पंकज चौधरी ने एक कदम उठाकर राजीव को न्याय दिलाने की बड़ी पहल कर दी है।
क्यों उलझाया प्राधिकरण ने सुलझा हुआ मामला?
2018 में आईएफएस राजीव चतुर्वेदी (IFS Rajiv Chaturvedi) को उपभोक्ता आयोग ने राहत देते हुए पैसा वापस दिलवाने का आदेश प्राधिकरण को दिया। लेकिन राजीव को पैसा देने की बजाय प्राधिकरण इसे न्यायालय में उलझाता रहा। जानकारों का कहना है कि प्राधिकरण के अधिकारियों ने प्राधिकरण और अधिकारियों की पुरानी करतूतें छिपाने के लिए इस कृत्य को लीगल जामा पहना कर उलझा दिया। क्योंकि 2011 से 2016 के बीच जयपुर विकास प्राधिकरण द्वारा लाई गई ज्यादातर योजनाएं ओवरप्राइस थी। यानी सरल भाषा में समझें तो, जनता को 5 लाख रुपए का माल 15 लाख में बेच दिया गया। इनकी न कभी जांच हुई, न ऑडिट में खुलासा हुआ। लेकिन इस दौर की दर्जनभर योजनओं के निवेशक आज भी रो रहे हैं। इन योजनाओं में न तो प्राधिकरण ने विकास किया, जिससे लोग बसने का सोच सकें और न ही इन्हें रीसेल (पुनर्बिक्री) लायक छोड़ा। इससे दस साल गुजर जाने के बाद भी इन योजनाओं में अलॉटी आज अपना प्लॉट बेचना चाहे, तो उसको मूल रकम देने वाले लोग भी मिल नही रहे।
रधुनाथ विहार, रोहिणी, कल्पना नगर, स्वप्न लोक सबके हाल बुरे
जयपुर विकास प्राधिकरण द्वारा ओपरप्राइस चार्ज की गई योजनाओं की फेहरिस्त लम्बी है। हमारे पास भी प्राधिकरण की अलग-अलग योजनाओं के अलॉटी ने बताया की उनका पैसा फंस चुका है और 10 साल बाद भी मूल रकम देने वाले मिल नहीं रहे। ऊपर से जयपुर विकास प्राधिकरण में लीज राशी भी हर साल बढ़ती जा रही है। इस क्रम में आगरा रोड़ स्थित कल्पना नगर के हाल बेहाल देखे गए।
हमारी टीम ने वरिष्ठ पत्रकार आनंद जोशी की शिकायत पर यहां विजिट किया, तो पता चला कि उजाड़ कॉलोनी में चोर बिजली के तार तक काट ले गए और रातों-रात बेच दिए, न बिजली विभाग ने मामला दर्ज करवाया न प्राधिकरण ने। बामुश्किल एक व्यक्ति ने घर बनाने की हिम्मत की, करीब 15 लाख लगा भी दिए, लेकिन सुविधाओं के अभाव में पूरा परिवार रातों-रात कल्पना नगर छोड़ भागा।
अजमेर रोड़ स्थित रघुनाथ विहार के हाल तो और खराब हैं। 2015 में 6600 रुपए वर्ग मीटर की रेट से यहां 90 मीटर का प्लॉट लेने वाले संजय अग्रवाल को ग्राहक नहीं मिल पा रहा कि उसे बेच दें। अब किसे कहें, कहां दुखड़ा रोएं कुछ पता नहीं। प्लॉट पर करीब सवा लाख से ज्यादा की लीज मनी भी ड्यू हो गई है।
इसी तर्ज पर डिग्गी मालपुरा रोड़ स्थित रोहिणी विहार फेज 3 के अलॉटी सतीश शर्मा ने भी अपनी पीड़ा हमारी टीम को बताई। सतीश शर्मा बीते चार साल से ग्राहक तलाश कर-कर के थक गए लेकिन डूबी हुई कॉलोनी में कोई खरीदने तक को तैयार नहीं।