समग्रता के साथ एकाग्रता एक व्यक्तित्व को भीड़ से अलग खड़ा करती है। जब जीवन में उद्देश्य बड़े हों, तो उम्र अनुभव में आड़े नहीं आती। क्योंकि परिपक्वता और बौद्धिक क्षमता किसी उम्र की मोहताज नहीं होती। ऐसी ही मिसाल हैं जयपुर के अर्णव मलिक। अर्णव मात्र 15 साल के हैं, स्कूली शिक्षा ले रहे हैं, लेकिन उनके काम को पसंद करने वालों की फेहरिस्त लम्बी है। एक संवेदनशील मन, सशक्त मस्तिष्क और सरलता से भरपूर व्यक्तित्व लिए अर्णव मलिक मेंटल हैल्थ को लेकर जबरदस्त काम कर रहे हैं। कम उम्र में अर्णव “खुशी-रे ऑफ होप” के जरिए तनाव का शिकार हो रहे किशोरों की जिंदगी में बड़ा बदलाव ला रहे हैं। अर्णव 11वीं के स्टूडेंट हैं, लेकिन कम उम्र में मेंटल हैल्थ प्रोटोकॉल का उपयोग कर रहे हैं। साथ ही डिप्रेशन आईडेंटीफिकेशन के साथ सायको-सोशल सपोर्ट पर काम कर रहे हैं।
पढ़ाई का तनाव, एग्जाम में स्कोर को लेकर पारिवारिक दबाव, डिप्रेशन और नकारात्मक महौल जैसे तमाम जानलेवा और मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पहलुओं के खिलाफ जयपुर के अर्णव मलिक के प्रयास खास मायने रखते हैं। आईआईटी, नीट समेत तमाम कॉम्पीटेटिव एग्जाम्स के तनाव समाज के लिए चिंता का विषय बन गए हैं। कोटा में परीक्षाओं की तैयारियों में जुटे विद्यार्थियों के बड़ी तादाद में सुसाइड के मामले सामने आए हैं। स्कूली बच्चे स्कोर के फेर में कहीं डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं, तो कहीं मौत को गले लगा रहे हैं। ऐसे में अर्वण मलिक एक उम्मीद की किरण बनकर उभरे हैं। अर्णव कहते हैं, ‘डिप्रेशन जिंदगी का एक हिस्सा है। डिप्रेशन की स्थित में दोस्त, परिवार, अपने और मेंटल हैल्थ प्रोफेशनल्स का सपोर्ट सबसे महत्त्पूर्ण होता है। ऐसी किसी भी स्थिति में किशोरों को अपने अनुभव शेयर करने, सपोर्ट और गाइडेंस प्राप्त करने के लिए एक उचित और सकारात्मक महौल मिलना बेहद जरूरी है। हम इसी दिशा में आगे बढ़ रहे हैं और अपनी संस्था के माध्यम से स्कूलों, सोसायटी के बीच आउटरीच एक्टीविटीज चला रहे हैं।’
अर्णव कई मामलों में हैं क्रिएटिव और एड्वांस
स्कूली शिक्षा के साथ जिस उम्र में छात्र वीडियो गेम्स और दोस्तों के साथ मस्ती के नाम पर अपना टाइम किल कर रहे होते हैं, उसी वक्त में अर्णव अपनी क्रिएटीविटी के जरिए अपने हमउम्र और अपनी उम्र से ज्यादा के छात्र-छात्राओं की जिंदगी में बदलाव के प्रयास कर रहे हैं। जहां इस उम्र में पढ़ाई के दबाव में विद्यार्थी परिवार के दबाव का शिकार हो रहे हैं, सुसाइड कर रहे हैं, वहीं उन्हें ऐसे दबावों से बाहर निकालने में अर्णव के प्रयास काबिलेतारीफ हैं। अर्णव रिसर्च और एनालिसिस के जरिए, लेखन और विचारों के जरिए कम उम्र में बड़ी वैचारिक और बौद्धिक ताकत विकसित कर रहे हैं। अच्छी परवरिश, परिपक्व सोच और मजबूत वैचारिक क्षमताओं के साथ अर्णव के प्रयास लीक से हटकर मिसाल के तौर पर देखे जा रहे हैं।
ऑथर भी हैं अर्णव मलिक
अर्णव ने ‘खुशी मेला’ शीर्षक से पुस्तक भी लिखी है, जिसकी प्रस्तावना हार्वर्ड में प्रैक्टिस ऑफ़ ग्लोबल मेंटल हैल्थ के प्रोफेसर डॉ. शेखर सक्सेना ने लिखी है। उन्होंने जॉर्जिया टेक के प्रोफेसर डॉ. गुइलेर्मो गोल्ड्स्टेन के मार्गदर्शन में मशीन लर्निंग एप्रोच का उपयोग करके सोशल मीडिया पर डिप्रेशन का पता लगाने और मापने पर रिसर्च भी किया है।
अर्णव मलिक के प्रयासों की उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ और राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र जैसी हस्तियों ने तो तारीफ की है, साथ ही राजस्थान की ब्यूरोक्रेसी में अर्णव के प्रयासों और तरीके को सराहने वाले भी कम नहीं हैं। कम उम्र में बड़े प्रयास और डिप्रेशन जैसी बड़ी समस्या का समाधान निकालने के लिए पॉजिटिव और क्रिएटिव एफर्ट्स अर्णव को लीक से हटकर एक मजबूत पहचान देते हैं। अर्णव के विचार, व्यवहार और व्यक्तित्व पर अपने ब्यूरोक्रेट माता-पिता की गहरी छाप देखने को मिलती है। अर्णव के पापा अजेय मालिक 2002 बैच के IRS ऑफिसर और मम्मी आरुषि अजेय मालिक 2005 की IAS अधिकारी हैं, जो फिलहाल संभागीय आयुक्त, जयपुर के पद पर सेवाएं दे रही हैं।