हाल ही संपन्न हुए विधानसभा चुनावों के पहले कई विभागों के अधिकारियों ने VRS अप्लाई किया। कुछ ने VRS ले लिया, कुछ बैक हो गए। कुछ ने चुनावी रण में भाग्य आजमाने के लिए संघर्ष किया। जीवनभर प्रशासनिक कार्यों की व्यस्तता के चलते चुनावी प्लेटफॉर्म पर कमजोर ही रहे। लेकिन मन है कि मानता नहीं। तब विपक्षी पार्टी के नेताओं ने चढ़ा दिया और पूर्व राजस्थान से ताल्लुक रखने वाले एक IAS ने VRS ले ली।
फील्ड में कमजोर पकड़ थी, तो पार्टी ने आईएएस को टिकट देने की बजाय 8वीं पास को टिकट दे दिया। यह आईएएस पूर्व राजस्थान में ही चार जिलों में कलक्टर भी रहे थे। लेकिन पार्टी ने एन वक्त पर खेला कर दिया। वीआरएस ले लिया था, तो इधर नौकरी भी गई उधर टिकट भी गई।
अब चुनाव भी हो गए। आठवीं पास नेताजी जीतकर विधायक भी बन गए। इन विधायकजी के बिगड़े बोल भी चुनावों में सामने आए थे जिसमें कह रहे थे कि मैंने तो कलक्टर, एसपी, थानेदार और मुख्यमंत्री को भी पीटा है। अब पूर्व आईएएस के समस्या हो गई। आरएएस से आईएएस बने थे, तो कन्फ्यूजन वाली चर्चाएं अपने आरएएस साथियों से लगातार कर रहे हैं। कह रहे हैं डेढ़-दो साल बचे थे। डेढ़ लाख तनख्वाह के भी लात मार दी। बेफाल्तू नुकसान कर लिया। अब क्या करूं? क्या कोई रास्ता है, जो वापस नौकरी ज्वॉइन कर लूं?
इसी पूछा-पाछी में अपने बैचमेट्स और जूनिसर्य के बीच दबी जुबान चर्चा में बने हुए हैं। कुछ सलाह दे रहे हैं, डटे रहो। राजनीति पर ही फोकस करो। कन्फ्यूज मत होवो। तो कुछ साथी अधिकारीगण गॉसिप्स कर रहे हैं कि जब इतना कन्फ्यूजन था, तो नौकरी छोडक़र राजनीति में क्या लेने गए थे? कुछ कह रहे हैं, चिंता मत करो लोकसभा के लिए ताल ठोक दो, अब दिन ही कितने बचे हैं लोकसभा में?
कुल मिलाकर कन्फ्यूजन-कन्फ्यूजन का खेला हो रहा है। इस खेले में पूर्व आईएएस को महीने की डेढ़ लाख की चिंता सताए जा रही है कि बैठे बिठाए नुकसान कर लिया।