भारतीय प्रशासनिक सेवा के 1998 बैच के अधिकारी टी. रविकांत बेहद संजीदा, ईमानदार, कर्मठ और सरल मिजाज के अधिकारी हैं। ऑफिसर्स टाइम्स के साथ एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में आईएएस टी. रविकांत ने संपादक प्रवीण जाखड़ से अपने जीवन के महत्त्वपूर्ण पहलू साझा किए।
आईएएस टी. रविकांत ( IAS T Ravikant ) आंध्र प्रदेश से ताल्लुक रखते हैं। दो संस्कृतियों का संपूर्ण मिलन है आईएएस टी. रविकांत का परिवार। दक्षिण के संस्कार और उत्तर की मर्यादाएं उनके घर के कोने-कोने में बसती हैं। आप भी इस खास मुलाकात के जरिए जानें, आईएएस टी. रविकांत ( IAS T Ravikant ) के जीवन के अनछुए पहलू –
सच्चे दोस्त जरूरी
टी. रविकांत कहते हैं, मैंने हमेशा ही माना है कि हमारे क्वालिटी दोस्त होने चाहिए, क्वांटिटी नहीं। कम हों, लेकिन सच्चे दोस्ते हों, तो जिंदगी की छोटी-बड़ी खुशियां उनके साथ बांटी जा सकती हैं। सच कहूं, तो सच्चे दोस्त के बिना जिंदगी अधूरी रहती है और अच्छे दोस्त से हर कमी पूरी हो जाती है।
मेरे तीन अपने, सबसे करीब
मां, दीदी और वंदना मेरे सबसे करीब हैं। मैंने मां से ही त्वरित निर्णय लेने और रिस्क लेने की क्षमताओं को जाना है। यह दोनों ही बातें, मुझे कामकाज में भी बेहद सहयोग करती हैं। बड़ी दीदी ने हमेशा मुझे लाड-प्यार से रखा। मेरी पढ़ाई के दौरान भी उन्होंने मेरी बहुत मदद की। …और वंदना उनके बिना तो मैं अधूरा हूँ। सही बताऊं, तो शादी के बाद भी मैं जैसा था, वैसा ही हूं। कुछ नहीं बदला मुझमे। इसका सारा क्रेडिट वंदना को ही है।
दुनिया हम नहीं कोई और चला रहा है
कई बार हम सोचते हैं कि दुनिया हम चला रहे हैं। मेरे बिना दुनिया नहीं चलेगी। ऐसा नहीं है। अगर आप इस विचार से बाहर आएंगे, तो खुद में एक शक्ति का एहसास पाएंगे। क्योंकि दुनिया हम नहीं कोई और चला रहा है।
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टी. रविकांत की नजर में खुद की पांच कमियां और पांच खूबियां
- 5 कमियां
- स्ट्रेट फॉरवर्ड हूं। साफ बोल देता हूं।
- संवेदनशील हूं। किसी भी काम में मिसिंग पसंद नहीं करता।
- एकदम से नहीं खेल पाता। इसलिए हमेशा एक जैसा दिखता हूं।
- जितना हूं, खुद को उससे कम प्रोजेक्ट कर पाता हूं
- वक्त का पाबंद हूं। कोई लेट होता है, तो थोड़ा असहज हो जाता हूं।
- 5 खूबियां
- सुलझा हुआ हूं।
- एकतरफा नहीं सोचता।
- गुस्से को काबू करना आता है।
- परिवार को बैलेंस्ड टाइम देता हूं।
- वायदे का पक्का हूं करता हूं, तो निभाता हूं।
भाषाई दूरियां नहीं रहनी चाहिए
मैं आंध्र से हूं, लेकिन मैंने भाषाई दूरिया न रहे इसके लिए हिंदी को सीखने, समझने में अच्छा वक्त दिया है। ट्रेनिंग के दौरान अकादमी में भी मुझे गैर हिंदी भाषी की हिंदी में मजबूत पकड़ के लिए गोल्ड मैडल मिला था। उस समय हिंदी सीखने के लिए दो से तीन घंटे रोज वक्त निकालता था। अब मैं अपनी फाइलों में कभी अंग्रेजी नहीं लिखता। ताकि भाषा से जुड़ी कोई दूरी, मुझमे, मेरे ऑफिसर्स में और आम आदमी में न बन पाए।
स्वीमिंग सीखना बड़ा अचीवमेंट
मेरी शुरू से ही ख्वाहिश थी कि स्वीमिंग सीखूं। हैदराबाद में कोशिश की, ओटीएस जयपुर और कोटा में भी प्रयास किया, लेकिन आखिरकार स्वीमिंग सीख ही ली। वैसे मैं शुरू से ही अच्छा एथलीट रहा हूं। हमारे स्कूल में ही कोच एक गेम को लेकर हमें तैयार करते थे। मुझे बेसबॉल में तैयार किया गया था। हमारी स्पोट्र्स ट्रेनिंग कुछ ऐसी होती थी कि हम कोई मैच नहीं हारते थे। मैंने स्कूल में पांच साल तक बेसबॉल खेला है। फिलहाल साईक्लिंग करता हूं और टेनिस भी खेलता हूं।
कोशिश होगी, आम आदमी के लिए कुछ कर पाऊं
ऐसा कोई काम जो लम्बे अर्से तक आम आदमी को सालों तक सहयोग करे। आईडिया जो जिंदा रहे, सालों तक। ऐसी तमन्ना है। हां, कुछ कॉलम और किताबें भी लिखना चाहता हूं। अपने विचारों को विस्तार देना चाहता हूं। जैसे ही वक्त मिलने लगेगा, इन्हें शुरू करूंगा।