काशी में ये उगता सूरज
न जाने कितनी सदियाँ देखा होगा
गंगा जी पर इसका प्रतिबिम्ब
अपने अंदर इतिहास समाये होगा।
भोर हुई तो हम भी चल पड़े
बनारस के घाट पर सुकून के कुछ पल खोजते
गंगा जी और उगते सूरज की तरह साक्ष्य होते काशी की लीला के।
नैय्या में बैठे तो माझी बोला
एक किनारे से दुसरे किनारे ले जायेगा
हमें क्या पता थे की ये सफर जीवन के हर पहलू से रूबरू कराएगा।
अस्सी घाट की चहल पहल कैसे मणिकर्णिका में धुआं हो गयी,
हमारी नैय्या हमें जीवन मृत्यु का बोध कराते आगे बढ़ चली।
हम भी चल दिए इस शहर से
कुछ यादें समेटे हुए
काशी के इतिहास के पन्नों में
अपनी जिंगदी का एक पन्ना लिखते हुए।
– मेघा भार्गव, आईआरएस (संयुक्त आयुक्त, आयकर विभाग)