खोने की हो फिक्र उन्हें क्यों, दुनिया जिनके लिए तमाशा।
जिनको अपनी रत्ती की है चिंता, गिनते वे ही तोला-माशा।
जो खाक जमीं पर होगा, गर्द जमा होने की फिक्र कहाँ होगी,
वो अपने शीशे चमकाने के जतन करें, जो ओहदे के हैं पाशा।
मिलने की हसरत उनको होती, चाह जहाँ हो कुछ पाने की,
जो बना कलंदर घूम रहा, बाँधोगे देकर क्या उसे दिलासा।
माना कल तक लावा सुलग रहा था, इस पथराये से सीने में,
ये जिंदगी जरखेज न बन पाई, पर राख से है अब भी आशा।
बहुत जोग से माटी गूँधी, चाक लिए बैठे के पास गया जब,
जाना वह तो बुत भर है, वह भी किसी संग से गया तराशा।
जो भी खोया वक्त में तुमने, उसकी वकत है फकत वक्त में,
मिला अंत में, पाया कंकड़ ही था, हीरे सा जिसे गया तलाशा।
वह बच्चा अब बूढ़ा है, फिर भी देख रहा है वो खेल-तमाशा।
दुनियावाला एक मदारी, गिन-गिन कर देता-लेता तोला-माशा।